नए उपभोक्तावर्ग का उदय हुआ। पहलीबार औरतों के निजी और सार्वजनिक वातावरण के बारे में विस्तार के साथ आमजीवन में बहस शुरू हुई। मध्यकाल में औरतों के सार्वजनिक और निजी में भेद नहीं था। उसे लेकर बहस भी नहीं थी। रैनेसां में औरतों की सामाजिक शिरकत को लेकर बहस शुरू हुई, औरतों के सवालों को सार्वजनिक तौर पर उठाया गया। मजदूरवर्ग का उदय हुआ। मजदूरवर्ग की भूमिका परिभाषित की गई। निजी अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक अर्थव्यवस्था में अंतर किया गया। मजदूरवर्ग के उदय का अर्थ है मर्दानगी के नए युग का उदय।मर्दानगी पहले घरेलू जीवन में वर्चस्व बनाए हुए थी अब यह मजदूरवर्ग और पूंजीपतिवर्ग के रूप में सार्वजनिक जीवन में वर्चस्व बनाए हुए है। पूंजीवादी व्यवस्था मजदूरवर्ग को आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर पामाल करती है। मनोवैज्ञानिक तबाही लेकर आती है।
मजदूरवर्ग की मर्दानगी के कारण औरतों को श्रम के लिए समान वेतन और सुविधाएं नहीं मिलीं। सहयोगी कार्यों के तौर पर औरतों के श्रम को देखा गया। औरतों के कार्य का स्त्रीकरण किया गया और स्त्री के काम को सेवाक्षेत्र के रूप में देखा गया। स्त्रीसेवा कार्यों में सचिव,घरेलू नौकरानी, सेल्सगर्ल, वेश्या,हाल ही में हवाई यात्राओं और दूरसंचार के क्षेत्र में भी औरत को देख सकते हैं।
साथ ही औरतों के सहयोगीकर्म के रूप में स्त्री के मातृत्ववाले गुणों से जुड़े कार्यों को रखा गया। जैसे नर्स,सामाजिक कार्यकर्त्ता, आया, प्राइमरी स्कूल शिक्षिका आदि। औरतों के उत्पीड़न के भी क्षेत्र तय रहे हैं जैसे शारीरिक उत्पीडन, कम मजदूरी, कम कौशल का काम,पार्टटाइम नौकरानी, दो शिफ्टों में काम करने वाले मजदूर ,दोनों शिफ्टों में काम करने वालों में बंधुआ घरेलू नौकर, वेतनभोगी घरेलू नौकर दोनों ही शामिल हैं। मजदूरों में मजदूरनी को दोयमदर्जा दिया गया। इसके अलावा लिंगाधारित कार्यक्षेत्र आ गए जिनमें कामकाजी माँ, कामकाजी पत्नी आदि पदबंधों का प्रयोग चल निकला इन पदबंधों का अर्थ है कि जो औरत काम कर रही है वह प्राथमिकतौर पर मॉ है और कमाई के लिए घर से बाहर निकली है। जिससे पूरक के रूप में कुछ कमाई कर सके। ये सारी चीजें मिलकर आजादी के पहले का सार्वजनिक वातावरण बनाती हैं।
आजादी के बाद भारत विभाजन,साम्प्रदायिक हिंसाचार, लाखों लोगों का कत्ल। लोकतंत्र का आगमन। लोकतांत्रिक संरचनाओं का निर्माण। लोकतांत्रिक मूल्यों,नियमों आदि के प्रति वचनवध्दता। नए वर्ग के तौर पर क्षेत्रीय पूंजीपतिवर्ग का उदय, ठेकेदार, इंजीनियर, डाक्टर,राजनीतिज्ञ आदि पेशेवर तबकों का उदय और विस्तार। संरचनाओं में नए और पुराने का द्वंद्व। न्यायपालिका और कार्यपालिका में पुराने मूल्यों और रूढियों के प्रति गहरी आस्था, संविधान में पर्सनल लॉ के रूप में 750 से ज्यादा समुदायों के निजी कानूनों का बने रहना। सामाजिक जीवन में पुराने मूल्यों,रीति-रिवाजों,मान्यताओं आदि को संविधान के द्वारा खुला संरक्षण। इसका समूचे सार्वजनिक और निजी जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ा। संविधान में पितृसत्ता और मर्दानगी को सर्वोच्च दर्जा और उसका महिमामंडन किया गया। इसने सार्वजनिक और निजी को नए सिरे से नियमित किया और निजता को विकसित ही नहीं होने दिया। निजता का व्यापक विकास तब ही हो पाया जब हम भूमंडलीकरण के दौर में दाखिल होते हैं। सार्वजनिक वातावरण के नाम उपभोक्तावादी वातावरण बनाने पर ज्यादा जोर दिया गया इसके कारण पितृसत्ता को नयी ऊर्जा मिली।
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