गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

साहित्य,सम्प्रेषण तकनीक और जनतंत्र

                                             (तेज कम्प्यूटर )

साहित्य को समाज के साथ देखना,समाज की देन मानना,पुराना नजरिया है।हमारे आलोचक लंबे समय तक इस नजरिए के शिकार रहे हैं। साहित्य के नए नजरिए का संबंध सम्प्रेषण तकनीक से है। साहित्य कैसा है ? साहित्य की मुख्य समस्याएं क्या हैं ? साहित्य का प्रयोजन क्या है ? साहित्य की भूमिका क्या है ? साहित्यकार का प्रयोजन क्या है ?इन सारे सवालों के जबाव इस समझ पर टिके हैं कि समाज में सम्प्रेषण के साधन किस तरह के हैं।

साहित्य की नयी धारणा का सम्प्रेषण तकनीक के नए रूपों के साथ गहरा संबंध है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में हजारीप्रसाद द्विवेदी पहले इतिहासकार हैं जो साहित्य के नए उभार को कम्युनिकेशन की तकनीक के साथ जोड़कर देखते हैं।

आधुनिक काल में गद्य- युग के आरंभ में आधुनिकता के आगमन को उन्होंने प्रेस के आगमन से जोड़ा,उन्होंने लिखा '' वस्तुत: साहित्य में आधुनिकता का वाहन प्रेस है और उसके प्रचार के सहायक हैं:यातायात के समुन्नत साधन। पुराने साहित्य और नए साहित्य का प्रधान अंतर यह है कि पुराने साहित्यकार की पुस्तकें प्रचारित होने का अवसर कम पाती थीं।राजाओं की कृपा,विद्वानों की गुणग्राहिता,विद्यार्थियों के अध्ययन में उपयोगिता आदि अनेक बातें उनके प्रचार की सफलता का निर्धारण करती थीं।प्रेस हो जाने के बाद पुस्तकों के प्रचारित होने का काम सहज हो गया,और फिर प्रेस के पहले गद्य की बहुत उपयोगिता नहीं थी।प्रेस हो जाने के बाद उसकी उपयोगिता बढ़ गई और विविध विषयों की जानकारी देने वाली पुस्तकें प्रकाशित होने लगीं। वस्तुत:प्रेस ने साहित्य को जनतांत्रिक रुप दिया।’’
       
प्रेस के आगमन के पहले साहित्य में जनतंत्र नहीं था। आधुनिक काल के पहले साहित्य में जनतंत्र नहीं था,समाज में जनतंत्र नहीं था। प्रेस साहित्य में जनतंत्र की प्रतिष्ठा करता है।साहित्य को जनतांत्रिक बनाता है। इसके अलावा साहित्य को यदि प्रेस ने जनतांत्रिक बनाया है तो साहित्य के कालान्तर में विकसित रूपों के विकास में फिल्म, रेडियो, टीवी,इंटरनेट आदि का भी गहरा संबंध रहा है। इस पक्ष की कायदे से खोज की जानी चाहिए

 दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि संचार की आधुनिक तकनीक जनतांत्रिक प्रक्रिया को शक्ति देती है,जनतांत्रिक प्रक्रियाओं,जनतांत्रिक शक्तियों और जनतांत्रिक संस्थाओं को मजबूती प्रदान करती है। इसके अलावा हजारीप्रसाद द्विवेदी पहले आलोचक हैं जो संचार और परिवहन के नए रूपों और तकनीक को तटस्थ और समानतावादी भूमिका के रूप में नहीं देखते।

द्विवेदीजी ने लिखा है '' रेल तो सन् सत्तावन के विद्रोह का प्रमुख कारण थी और तार उस विद्रोह को दबाने का सफल अस्त्र साबित हुआ।'' इन साधारण सी दिखने वाली पंक्तियों में आधुनिक तकनीक का समग्र रहस्य छिपा है। आधुनिक तकनीक के रूप न तो तटस्थ होते हैं और न विचारधारा रहित होते हैं बल्कि वर्चस्व स्थापित करने के साधन हैं।शोषण के साधन हैं।साम्राज्यवादी वर्चस्व के साधन हैं। द्विवेदीजी ने रेल को बगावत का स्रोत बताया है, साथ ही तार को विद्रोह को दबाने का प्रधान अस्त्र बताया है। निष्कर्ष यह कि भारत में संचार और परिवहन के रूपों ने वर्चस्वका विकास किया।

एक अन्य संदर्भ में द्विवेदीजी ने लिखा '' अब मशीनों के उत्पात ने दुनिया बदल दी है। ...  छापे की कल ने कविता के व्यापक क्षेत्र को कई हिस्सों में बांट दिया है।कहानियों ने बहुत हिस्सा पाया है।उपन्यासों ने बहुत -कुछ हथिया लिया है। निबन्धों ने भी कम नहीं पाया है। समाचार-पत्रों ने - और विशेष रूप से मासिक पत्रों ने- कवि सम्मेलनों की कमर तोड़ दी है।कविता कान का विषय न होकर ऑंख का विषय हो गयी है।सुनना अब उतना महत्व नहीं रखता, पढ़ना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है और इन्द्रिय-परिवर्तन के साथ -ही साथ कविता के आस्वाद्य  वस्तु में भी परिवर्तन हुआ है। ... छापे की कल ने हमें भावावेश पर से धकियाकर बुध्दि-प्रवाह में फेंक दिया है।'' यह भी लिखा '' जब तक दुनिया में छापे की मशीन नहीं थी तब तक मुक्त -छन्द भी नहीं थे।... समस्त संसार में मुक्त छन्द के प्रसार का कारण मशीनें हैं।''

प्रेस ने हमारी स्मृति को चिरस्थायी बनाया है। 'स्मृति' को नए आयाम दिए हैं। प्रेस के आने साथ ही 'पुस्तक' का जन्म होता है। 'पुस्तक' एक नया मीडियम हैइसके पहले हम पोथी के युग में थेनयी तकनीक के आने के बाद इधर के वर्षों में लोग पुस्तक के लोप के बारे में चर्चाएं कर रहे हैं। संक्षेप में यही कह सकते हैं कि नयी संचार तकनीक का पुस्तक से बैर नहीं है। नए कम्युनिकेशन के माध्यम पुराने माध्यमों को अप्रासंगिक नहीं बनाते,बल्कि उनकी गतिविधियां बढ़ा देते हैं। 

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