सोमवार, 25 जनवरी 2010

टेड नेल्सन और हाइपर टेक्स्ट का नया युग


                                 (टेड नेल्सन)
                                                                    
 वन्नेवर बुश ने जब मिमिक्स की धारणा दी तो उनके सामने एकाकी अनुंसधार्नकत्ता की समस्या केन्द्र में थी।उसे चिन्ता थी कि आज मानव सभ्यता विकास के जिस मुकाम पर पहुँच गई है उसे देखते हुए शोर्धकत्ता को दस्तावेजों को पढ़ने,खोजने और छांटने में गंभीर असुविधा हो सकती है।एकाकी शोर्धकत्ता को कैसे दस्तावेजों के इस जंगल से मुक्ति दिलायी जाए यही प्रधान बिन्दु था जिसे केन्द्र में रखकर मिमिक्स की धारणा का जन्म हुआ।इसी मिमिक्स मशीन की धारणा को आधार बनाकर टेड नेल्सन ने सन् 1965में 'हाइपर टेक्स्ट' की धारणा दी।टेड नेल्सन पहला वैज्ञानिक है जिसंने साहित्य को केन्द्र में रखकर 'हाइपरटेक्स्ट' पर विचार किया। उसने इसे 'लिटरेरी मशीन' कहा।यह ऐसी मशीन है जो कागज के बिना सोचती है।स्वयं ही प्रकाशित है।यह ऐसी रीडिग है जो हाइपर टेक्स्ट की पृष्ठभूमि,विचार और उत्साह को पैदा करती है।
टेड नेल्सन का जन्म 1937 को हुआ।इन दिनों ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर हैं। आधुनिक दर्शन,मनुष्य और कम्प्यूटर के अन्तस्संबंध से जुड़े सवालों पर कार्यरत हैं।टेड नेल्सन ने 1960 में एक्सनाडु प्रकल्प की शुरूआत की।कुछ अपरिहार्य असुविधाओं के कारण इस प्रकल्प को बाद में बीच में ही बंद करना पड़ा।टेड नेल्सन के हाइपर टेक्स्ट संबंधी विचारों को जानने के लिहाज से उनकी लिखी ' कम्प्यूटर लिव/ ड्रीम मशीन्स' और 'लिटरेरी मशीन्स' महत्वपूण्र्

ा कृतियां हैं।एक्सनाडु प्रकल्प के फेल हो जाने के बाद टेड नेल्सन के विचारों को टिम बर्नर्स ली ने डब्लयू डब्ल्यू डब्ल्यू प्रकल्प के नाम से साकार कर दिखाया।इसी को हम वर्ल्ड वाइड वेब के नाम से जानते हैं।टिम बर्नर्स ली के इस प्रकल्प की परिकल्पना के साकार रूप को देखकर टेड नेल्सन ने कहा कि यह मेरी धारणाओं और परिकल्पना का अतिसरलीकृत रूप है।इसीलिए उसे यह कार्य पसंद नहीं आया।टेड नेल्सन ने कहा कि टिम बर्नर्स ली ने वर्ल्ड वाइड वेब,इंटरनेट,एक्सएमएल और उससे जुड़े मारकप के बारे में जो कार्य किया है वह उसके कार्य का अति सरलीकरण है।टेड नेल्सन इन दिनों 'ज़िगजेग़' नामक नई सूचना संरचना पर कार्य कर रहे हैं।टेड नेल्सन के काम को स्वीकृति देते हुए फ्रंास सरकार ने 2001 में अपने यहां के सर्वोच्च सम्मान 'ऑफिसर डेज आर्ट्स एट लेटर्स' से सम्मानित किया। 2004 में उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वाघम कॉलेज में फैलो नियुक्त किया गया।वह आक्सफोर्ड के इंटरनेट इन्स्टीट्यूट से भी जुड़े हैं।इन दिनों वहीं पर कार्यरत हैं।टेड नेल्सन की मॉ अभिनेत्री और पिता संगीतकार थे।मॉ को आस्कर और पिता को ग्रेम्मी एवार्ड मिला।टेड नेल्सन ने 1959 में दर्शन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।जबकि स्नातकोत्तर डिग्री उन्होंने समाजशास्त्र में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की।किओ विश्वविद्यालय से 'एनवायरमेंटल इनफॉर्मेशन' पर पीएचडी की।
उल्लेखनीय है कि वन्नेवर बुश ने माइक्रो फिल्म को आधार बनाकर मिमिक्स मशीन की धारणा निर्मित की थी।इसी के आधार पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में स्नातक करते हुए टेड नेल्सन ने सबसे पहले 1960 में हाइपर टेक्स्ट की रचना की थी।इसे बाद में एक्सनाडु सिस्टम नाम दिया गया। बाद में टेड नेल्सन ने 'जीपरेड लिस्ट्स' शीर्षक से एक पर्चा लिख जो एक्सनाडु प्रकल्प का आधार बना।यह पर्चा 1965 में कम्प्यूटिंग मशीनरी एसोसिएसन' की काँफ्रेंस में पेश किया गया।
टेड नेल्सन से एक साक्षात्कार में यह सवाल पूछा गया कि उसके दिमाग में हाइपर टेक्स्ट का विचार सबसे पहले कैसे और कब आया ?इसके जबाव में उसने कहा कि प्रत्येक बच्चे की तरह बचपन में मुझे भी पढ़ने,लिखने,साहित्य और फिल्मों का शौक था।युवावस्था में मैंने खूब लिखा भी है।उसी दौर में मेरे दिमाग में यह विचार आया कि विचार,वाक्य- विन्यास, संवाद, कोहरेंस,संरचना आदि एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।यह बेहद जटिल प्रक्रिया है।उसी समय मेरे दिमाग में यह बात आई कि क्या ऐसा हो सकता है कि ये सब क्रमबध्द न हों। अन्तर्निहित न हों।कच्चे हों।प्रिण्ट में जाने पर पक्का हो जाता है।लिखने पर पक्का हो जाता है।इसके लिए उसे क्रमबध्द रूप में लिखना होता है।इस तरह के लेखन में विचार का अपना ढ़ंांचा होता है,अपनी विशेष संरचना होती है।उसे एकरेखीय क्रम में पेश किया जाता है।बाद में पाठक इसी रेखीय संरचना को ग्रहण कर लेता है। री-कम्पोज करके अपनी इमेजं बंद कर लेता है।या फिट कर लेता है।मेरी मुश्किलें यहीं से शुरू हुईं।मैंने 'लेखक के समय' और 'पाठक के समय' इन दोनों को 'हाइपर टेक्स्ट'में एक ही साथ पेश किया है।नेल्सन का मानना है कि उसे 'हाइपर टेक्स्ट' के निर्माण में साहित्य से सबसे ज्यादा मदद मिली। उसकी समूची नई खोज का आधार साहित्य है।
टेड नेल्सन ने 'ड्रीम मशीन्स' नामक कृति में 'हाइपर ग्राम्स','हाइप मेप्स' और सिनेमा की एक शाखा को केन्द्र में रखकर हाइपर टेक्स्ट का विश्लेषण किया है।इस कृति में उसने तीन कोटियों की चर्चा की है।इसमें पहली कोटि में 'रिफरेंस' या 'लिंक' है। दूसरी कोटि में 'सीधा पाठ' आता है।यह लिंक को पूरी तरह लागू करता है।विस्तार देता है। तीसरी कोटि  में समानान्तर पाठ आता है। यानी दो दस्तावेज एक साथ कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखे जा सकते हैं।साथ ही पूरा रूप भी सामने होगा।नेल्सन ने 'नई' और 'मूल' 'हाइपरबुक' को 'ऑण्टोलॉजिकल हाइपर बुक्स' नाम दिया।जिसका भिन्न-भिन्न किस्म की रचनाओं और 'ग्राण्ड सिस्टम' से गहरा संबंध है।नेल्सन ने लिखा कि इसमें विषय से संबंधित सब कुछ शामिल है। अथवा अस्पष्ट रूप में जो भी प्रासंगिक है वह भी शामिल है।यह संपादक से जुड़ा है न कि प्रोग्रामर से।आप इसे जैसे भी चाहें पढ़ सकते हैं।इसके वैकल्पिक 'पथ' भी हैं।जिनके जरिए भिन्न तरीके से सोच सकते हैं।टेड नेल्सन ने वन्नेवर बुश के 1945 में लिखे चर्चित निबंध 'एज वी मे थिंक' को अपनी पुस्तक में एक अध्याय के रूप में पेश किया है। साथ ही वन्नेवर बुश को ही हाइपर टेक्स्ट की धारणा के लिए श्रेय दिया है।


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