मंगलवार, 27 जुलाई 2010

मीडियायुग में किताब को जिंदा रखो

       स्त्री और पुरूष दोनों किस्म के लेखन में संरक्षक का बड़ा महत्व है। वर्जीनिया वुल्फ ने संरक्षक के सवाल पर विचार करते हुए लिखा है कि आम तौर पर स्त्री पुरूष दोनों ही अव्यावहारिक सलाह के आधार पर लिखते हैं। सलाह देने वाले यह सोचते ही नहीं हैं कि उनके दिमाग में क्या है। लेखक चाहे या न चाहे वे अपनी सलाह दे देते हैं।
      लेखक को अपना आश्रयदाता,संरक्षक,सलाहकार सावधानी के साथ चुनना चाहिए। लेखक को लिखना होता है जिसे अन्य कोई पढ़ता है। आश्रयदाता आपको सिर्फ पैसा ही नहीं देता बल्कि यह भी बताता है कि क्या लिखो,इसकी प्रच्छन्न रूप में सलाह या प्रेरणा भी देता है। अत: आश्रयदाता या संरक्षक ऐसा व्यक्ति हो जिसे आप पसंद करते हों।लोग जिसे पसंद करें।यह पसंदीदा व्यक्ति कौन होगा ? कैसा होगा ?
       प्रत्येक काल में पसंदीदा व्यक्ति की अवधारणा बदलती रही है। मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक लेखक के आश्रयदाता और पसंदीदा व्यक्ति का विवेचन करने के बाद वर्जीनिया वुल्फ ने लिखा है प्रत्येक लेखक की अपनी जनता होती है। अपना पाठकवर्ग होता है। यह पाठकवर्ग आज्ञाकारी की तरह अपने लेखक का अनुसरण करता है। उसकी रचनाएं पढ़ता है।लेखक अपनी जनता के प्रति सजग भी रहता है। उससे ज्यादा श्रेष्ठ बने रहने की कोशिश भी करता है। लेखक की अपनी जनता में जनप्रियता अपने लेखन के कारण होती है। क्योंकि लेखन ही संप्रेषण है।
          आधुनिक लेखक का संरक्षक उसका पाठकवर्ग है,जनता है।आधुनिक काल में पत्रकारिता का लेखक पर दबाव होता है कि वह प्रेस में लिखे,पत्रकारिता पूरी कोशिश करती है कि किताब में लिखना बेकार है, कोई नहीं पढ़ता,अत: प्रेस में लिखो। वुल्फ ने लिखा है कि इस धारणा को चुनौती दी जानी चाहिए। किताब को हर हालत में जिन्दा रखा जाना चाहिए।किताब को पत्रकारिता के सामने जिन्दा रखने के लिए जरूरी है कि उसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए।
      हमें ऐसे संरक्षक की खोज करनी चाहिए जो पढ़ने वालों तक पुस्तक ले जा सके। हमें किताब के साथ खेलने वालों की नहीं पढ़ने वालों की जरूरत है। ऐसा साहित्य लिखा जाए जो अन्य युग के साहित्य को निर्देशित कर सके,अन्य जाति के लोगों को आदेश दे सके।लेखक को अपने संरक्षक का चुनाव करना चाहिए,यह उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। सवाल यह है कि उसे कैसे चुना जाए ? कैसे अच्छा लिखा जाए ? वर्जीनिया वुल्फ ने सवाल उठाया है कि हमारे साहित्य में स्त्री का चेहरा तो आता है।किन्तु उसकी इच्छाएं नहीं आतीं। उसके भाव नहीं आते। उसके प्रति सबके मन में सहानुभूति है,वह सब जगह दिखाई भी देती है। किन्तु उसकी इच्छाएं कहीं भी नजर नहीं आतीं।
         वुल्फ कहती है पुस्तक कैसे पढ़ें इसके बारे में कोई भी निर्देश नहीं दिए जा सकते। प्रत्येक पाठक को जैसे उचित लगे पढ़ना चाहिए। उसे अपने तर्क का इस्तेमाल करना चाहिए और अपने निष्कर्ष निकालने चाहिए। हमें स्वतंत्रता का प्रयोग करना चाहिए। किन्तु कहीं ऐसा न हो कि इसका दुरूपयोग होने लगे। पाठक की शक्ति का सही इस्तेमाल करने के लिए उसके प्रशिक्षण की भी जरूरत है।
     पुस्तक पढ़ते समय यह ध्यान रखा जाए कि हम कहां से शुरूआत करते हैं ? हम पाठ में व्याप्त अव्यवस्था में कैसे व्यवस्था पैदा करते हैं, उसे कैसे एक अनुशासन में बांधकर पढ़ते हैं। जिससे उसमें गंभीरता से आनंद लिया जा सके। पुस्तक पढते समय हमें विधाओं में प्रचलित मान्यताओं का त्याग करके पढ़ना चाहिए।
     मसलन् लोग मानते हैं कि कहानी सत्य होती है। कविता छद्म होती है। जीवनी में चाटुकारिता होती है, इतिहास में पूर्वाग्रह होते हैं। हमें इस तरह की पूर्व धारणाओं को त्यागकर साहित्य पढ़ना चाहिए। आप अपने लेखक को निर्देश या आदेश न दें। बल्कि उसे खोजने की कोशिश करें। लेखक जैसा बनने की कोशिश करें। उसके सहयात्री बनें। यदि आप पहले से ही किसी लेखक की आलोचना करेंगे तो उसकी कृति का आनंद नहीं ले पाएंगे। यदि खुले दिमाग और व्यापक परिप्रेक्ष्य में कृति को पढ़ने की कोशिश करेंगे तो कृति में निहित श्रेष्ठ अंश को खोज पाएंगे।
       निबंध विधा के बारे में वर्जीनिया वुल्फ का मानना था निबंध छोटा भी हो सकता है और लंबा भी।गंभीर भी हो सकता है और अगंभीर भी। वह पाठक को आनंद देता है। वह किसी भी विषय पर हो सकता है। निबंध का अंतिम लक्ष्य है पाठक को आनंद देना। निबंध को पानी और शराब की तरह शुध्द होना चाहिए। अपवित्रता का वहां कोई स्थान नहीं है।निबंध में सत्य को एकदम नग्न यथार्थ की तरह आना चाहिए।सत्य ही निबंध को प्रामाणिक बनाता है।उसको सीमित दायरे से बाहर ले जाता है।सघन बनाता है।विक्टोरियन युग में लेखक लंबे निबंध लिखते थे ? उस समय पाठक के पास समय था।वह आराम से बैठकर लंबे निबंध पढ़ता था। लंबे समय से निबंध के स्वरूप में बदलाव आता रहा है। इसके बावजूद निबंध जिन्दा है। अपना विकास कर रहा है।वुल्फ का मानना था कि निबंध सबसे सटीक और खतरनाक उपकरण है।इसमें आप भगवान के बारे में लिख सकते हैं।व्यक्ति के जीवन के दुख,सुख के बारे में लिख सकते हैं।निबंध ही था जिसके कारण लेखक का व्यक्तित्व साहित्य में दाखिल हुआ। निबंध शैली का बडा महत्व है। किसी लेखक के बारे में लिख सकते हैं।यह भी सच है कि इतिहास का उदय निबंध से हुआ है।










3 टिप्‍पणियां:

  1. nisandeh pustkon ka koi saani nahin .khas taur se achchhi or saahityik maankon ki kasauti pr khari jo utr gain ainsi sarvkaalik kitaben manavsabhyta ki dharohr huaa kartee hain .
    aap ka lekhan vishw sarvhara ki pkshdharta se otprot hai .aapkaka srujan sampurn manav jaati ke liye abhinandneey hai .aap ko hm or jyada sanjeedgee se padhenge .

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