tag:blogger.com,1999:blog-1744019985476764919.post2573732569125555899..comments2023-05-28T19:37:57.029+05:30Comments on नेट साहित्य: संघ परिवार के विचार मुसोलिनी से क्यों मिलते हैं ?जगदीश्वर चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/06417945584062444110noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1744019985476764919.post-18989628413333368482010-06-18T09:57:49.082+05:302010-06-18T09:57:49.082+05:30सादर वन्दे !
चतुर्वेदी जी ,
आपके लेख को पढ़कर ये त...सादर वन्दे !<br />चतुर्वेदी जी ,<br />आपके लेख को पढ़कर ये तो मालूम चल गया की आप संघ के बारे में कुछ नहीं जानते ! लेकिन ये नहीं मालूम चल पाया की आप की मानसिकता संघ विरोधी क्यों है | आप जैसे ही कथित बुद्धिजीवी इस समाज के कैंसर हो गए हैं जिसके कारण पूरा भारत त्राहि त्राहि कर रहा है |<br />क्या आप बताएँगे की आपने अपने जीवन में मानव कल्याण के कितने कार्य विना किसी व्यक्तिगत फायदे के लिए किये है ?<br />आप जैसे बेवकूफ लोग दूसरों को भी बेवकूफ बनाते हैं, अगर दिमाक में इतनी ही गन्दगी है तो इसका इलाज दूसरों को गाली देना नहीं है, इसका इलाज खुद का आत्ममंथन है| अगर देश की दलाली का इतना ही शौक है तो पहले तो आप ये देश छोड़ दे, फ़िदा हुसैन की तरह ........<br />मै आपके इस बचपना (किसी लाभ के लिए घृणित मानसिकता) पर कहना तो बहुत चाहता था, लेकिन मुझे मालूम है की आपको सच्चाई से कोई मतलब नहीं होगा इसलिए बस इतना ही |<br />अंतत<br />मै आपसे उम्र में छोटा हूँ इसलिए मुझे इतने कड़े शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था, लेकिन अगर बड़ा गलती करे तो उसको रास्ता दिखाने का काम छोटो का कर्तव्य बनता है, जो मैंने किया |<br />आपसे एक अनुरोध है कि पहले आप संघ को जाने! और इसके लिए बहस कि नहीं शाखा आने कि जरुरत है |<br /><br />आपके देश का एक नौजावन जो आपके भटकाने पर नहीं भटका !<br />रत्नेश त्रिपाठीaaryahttps://www.blogger.com/profile/08420022724928147307noreply@blogger.com